मध्य प्रदेश में अभी सियासी उठापटक रुकने का नाम नहीं ले रहा है।आज विधानसभा की कार्यवाही शुरू होने के बाद स्पीकर प्रजापति ने कोरोना वायरस का हवाला देते हुए सदन को 16 मार्च तक स्थगित कर दिया।
जिसके कारण फ्लोरटेस्ट तब तक का चल गया। इससे परेशान होकर बीजेपी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। जिसमें मांग की गई है कि 48 घंटे के अंदर फ्लोरटेस्ट करवाया जाए।
भाजपा ने आज अपने 106 विधायकों की सूची राज्यपाल को भी सौंपी है। और राज्यपाल के समक्ष फ्लोर टेस्ट भी करवाया है।
क्या रहेगी स्पीकर की भूमिका
इन सारे मामले में स्पीकर की भूमिका अहम रहने वाले हैं।स्पीकर या तो बागी विधायकों का इस्तीफा मंजूर कर सकता है या उन्हें फिर आयोग करार दे सकता है। जैसा कि कर्नाटक में हुआ था।
आयोग करार देने की स्थिति में यह सारे 22 सीटें खाली माने जाएगी और कमलनाथ सरकार अल्पमत हो जाएगी। जिसके बाद विधानसभा की सीटों के अनुसार भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभेर्गी और उन्हें सरकार बनाने का न्योता मिलेगा।इन 22 सीटों पर दोबारा चुनाव होंगे।
इसके अलावा स्पीकर अगर अपने फैसलों में देरी भी कर सकते हैं। जिससे कांग्रेस पार्टी के विधायकों को मनाया जा सकता है और फिर उन्हें पार्टी में लाया जा सकता है और कमलनाथ सरकार फिर से बन सकती है।
राष्ट्रपति की भूमिका
इन सब में राष्ट्रपति की भूमिका भी अहम हो सकता हैं।विधानसभा के गठन के बाद सदन की पूरी कार्रवाई स्पीकर के हाथों में होती है परंतु राज्यपाल एक निश्चित समय तक फ्लोरटेस्ट करवाने के लिए भी कह सकते हैं।
राष्ट्रपति शासन भी लग सकता है ?
अगर राज्य सरकार और स्पीकर जानबूझकर फ्लोर टेस्ट करवाने में देरी करते हैं तो राज्यपाल राजनीतिक अस्थिरता का हवाला देते हुए राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकते हैं।हाल के दिनों में यह महाराष्ट्र में देखा भी गया था,जब राष्ट्रपति जी ने तीन बड़े दल को सरकार बनाने के नयोता देने के बाद भी जब वहां सरकार नहीं बनी तो राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की थी और बाद में महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ था।
देखा जाए तो मध्य प्रदेश में अभी सियासी उठापटक जोरों पर है कभी लगता है कि कांग्रेस की सरकार बन जाएगी तो कभी भाजपा की सरकार देखते हैं इस पर सुप्रीम कोर्ट क्या करती है।