अमजद खान की जेब में पत्नी को हॉस्प‍िटल से डिस्चार्ज कराने के नहीं थे पैसे, मांगना पड़ा था लोगों से उधार

अमजद खान (Amjad Khan)… हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का एक ऐसा नाम जिसे गब्बर के नाम से आज भी लोग याद करते हैं। आज भी फिल्म शोले (Shole) के अमजद खान के डायलॉग लोगों की जुबान पर चढ़े रहते हैं। अमजद खान ने अपने बॉलीवुड सफर (Amjad Khan Bollywood Journey) में कई दमदार फिल्मों में काम किया। उनका करियर हमेशा बुलंदियों के आसमान को छूता रहा… लेकिन करियर की शुरुआत में एक दौर वो भी था, जब अमजद खान की जेब में इतने पैसे भी नहीं थे कि वह अपनी पत्नी (Amjad Khan Wife) को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करा सकें और अपने बेटे (Amjad Khan Son) की पहली झलक देख सकें।

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Amjad Khan Family

जब अमजद की जेब में नहीं थे पैसे

दरअसल अमजद खान के बेटे शादाब खान ने अपने एक इंटरव्यू के दौरान अपने पिता से जुड़ी कई बातों का खुलासा किया। इस दौरान शादाब खान ने बताया कि जब मेरा जन्म हुआ तब मेरे पिता के पास मां को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करवाने के लिए भी पैसे नहीं थे। मां रो रही थी। पैसों की कमी और शर्म के चलते पिताजी अस्पताल नहीं आ रहे थे। वह अपना चेहरा छुपा रहे थे। चेतन आनंद ने मेरे पिता को एक कोने में अपना सिर पकड़े हुए देखा, तो इसके बाद प्रोड्यूसर चेतन आनंद ने उन्हें ₹400 देकर मदद की। उस दौरान मेरे पिताजी उनकी फिल्म हिंदुस्तान की कसम में काम कर रहे थे।

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इस बात का सता रहा था हर

शादाब खान ने आगे बताया कि जब शोले के गब्बर का रोल पिता को मिला तो सलीम खान साहब ने डायरेक्टर रमेश सिप्पी को उनका नाम भी रिक्मेंड किया था। बैंगलोर एयरपोर्ट से करीबन 70 किलोमीटर दूर बाहरी इलाके रामगढ़ में इस फिल्म की शूटिंग होनी थी। शूट के लिए प्लेन उड़ा लेकिन उस दिन इतना टरब्यूलेंस था कि प्लेन को सात बार लैंड करना पड़ा। ऐसे में जब प्लेन रनवे पर रुका, तो ज्यादातर लोग डर के मारे फ्लाइट से उतर गए लेकिन मेरे पिताजी नहीं निकले।

दरअसल वो प्लेन से इसलिए नहीं निकले, क्योंकि उन्हें डर था कि अगर उन्होंने फिल्म नहीं की, तो यह है डैनी साहब यानी डैनी डेंजोंगप्पा के पास चली जाएगी। इसलिए कुछ घंटों बाद वह फ्लाइट से उतर गए।

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याद दिला दे फिल्म शोले साल 1975 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म की कहानी सलीम जावेद ने लिखी थी और इसका डायरेक्शन रमेश सिप्पी ने किया था। इस फिल्म में अमजद खान के अलावा अमिताभ बच्चन, संजीव कुमार, हेमा मालिनी, धर्मेंद्र और जया बच्चन मुख्य भूमिका में नजर आए थे। यह इस दौर की पहली ऐसी फिल्म थी जिसके हीरो से ज्यादा विलेन की चर्चा सुर्खियों का केंद्र बनी थी।