हमारे देश से हर साल सैकड़ों स्टूडेंट डॉक्टर बनने का सपना लेकर यूक्रेन जाते हैं। ये सुनने में तो बेहद अच्छा लगता है कि हमारे देश की अपेक्षा यूक्रेन में स्टूडेंट कम पैसे में ही डॉक्टर की पढ़ाई पूरी कर लेते हैं। लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि वहां से डॉक्टर बनकर आने के बाद इंडिया में उनकी तबतक कोई अहमियत नही रहती जबतक वे यहां पर होने वाले एक टेस्ट को पास नही कर लेते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि यूक्रेन समेत कई अन्य देशों से डॉक्टर बनकर आने के बाद भी इंडिया में बेहद चंद स्टूडेंट्स ही असल में डॉक्टर बन बाते हैं। बाकी के स्टूडेंट एमबीबीएस जैसी टफ पढ़ाई करने के बाद भी इंडिया में कम्पाउंडर या किसी डॉक्टर के असिस्टेंट का काम करने को ही मजबूर हैं।
15 साल में केवल 348 स्टूडेंट्स ही बनें डॉक्टर :-
फिलहाल रूस और यूक्रेन के बीच हो रहे युद्ध के दौरान सबसे ज्यादा चर्चा वहां फंसे हुए मेडिकल स्टूडेंट्स की हो रही है। ये सभी स्टूडेंट्स यूक्रेन एमबीबीएस की पढ़ाई करने गए थे और अब वहां फंस गए है। लेकिन विदेशों से डिग्री लेने वाले छात्रों का एक दूसरा पहलू भी है जो बेहद चिंताजनक है। आपको जानकर हैरानी होगी कि पिछले 15 साल में मध्य प्रदेश के कुल 8000 ऐसे स्टूडेंट्स हैं जो विदेश से एमबीबीएस की डिग्री लेने के बाद भी आज या तो कम्पाउंडर का काम कर रहे हैं या किसी डॉक्टर के असिस्टेंट बन गए हैं।
जी हां, दरअसल इन छात्रों ने यूक्रेन, उजबेकिस्तान, कजाकिस्तान, अजरबैजान, बिस्बैक और किरगिस्तान से 20-20 लाख रुपए की फीस देकर एमबीबीएस की डिग्री तो ले ली है, लेकिन भारत में ये छात्र डॉक्टरी के लाइसेंस के लिए जरूरी स्क्रीनिंग टेस्ट या फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट (एफ एमजी) टेस्ट पास नहीं कर पाए हैं। चिकित्सा शिक्षा विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक बीते 15 साल में ऐसे कुल 348 छात्र ही हैं जिनके पास भारत में डॉक्टरी करने का लाइसेंस हैं।
बांगलादेश और म्यांमार भेज रहे दलाल :-
यहां शहर में ऐसी कई एजेंसियां हैं जो नीट काउन्सलिंग में असफल हुए छात्रों को विदेश में एमबीबीएस कराने का झांसा देती हैं और सिर्फ रशियन देश ही नहीं बल्कि ये संस्थाएं अब बांगलादेश और म्यांमार जैसे देशों से भी एमबीबीएस का प्रचार शुरू कर चुकी है। इन संस्थाओं के एजेंट बाहर के छात्रों पर नजर रखते हैं और फिर वो विदेश से डिग्री के लिए छात्रों का पासपोर्ट, वीजा से लेकर पांच साल रहने खाने की व्यवस्था भी करते हैं।
केस – 01 :-
साल 2013 में जफर खान ने उजबेकिस्तान से एमबीबीएस किया था। लेकीन भारत में कई बार स्क्रीनिंग टेस्ट देने के बावजूद भी वह सफल नही हो सके और अब वह फिलहाल एक निजी अस्पताल में मैनेजमेंट संभाल रहे हैं।
केस- 02:-
समीर सोलंकी नाम के इस शख्स ने किर्गिस्तान से एमबीबीएस किया था और वह लगातार स्क्रीनिंग टेस्ट दे रहे थे। हालांकि टेस्ट में पास नही होने के बाद अब फिलहाल वह बीएचएमएस कर रहे हैं। साथ ही एक अस्पताल में बतौर असिस्टेंट काम कर रहे हैं।
कुछ ऐसी है संस्थाओं की फीस :-
मालूम हो कि इन संस्थाओं की फीस कुल 42 लाख रुपये है जिसमे 20 लाख रुपए-कोर्स फीस, 02 लाख रुपए- पासपोर्ट वीजा और अन्य दस्तावेज, 15 लाख रुपए- रहना खाना और 05 लाख रुपए अन्य खर्च के लिए होते है। हालांकि आपको बतादें कि भारत में इन डिग्री की कोई मान्यता नही है। दोनों देशों के सब्जेक्ट्स में अंतर होने के कारण अधिकतर छात्र देश के एफ एमजी टेस्ट में फेल हो जाते हैं। इतना ही नही भारत और बाकी विदेशी जगहों के भौगोलिक, सांस्कृतिक और पर्यावरण के आधार पर कई असमानताएं है। ऐसे में वहां और यहां की बीमारियों से लेकर दवाओं और इलाज के तरीकों में भी बेहद अंतर होता है। ऐसे में छात्र एमबीबीएस होते हुए भी यहां की परीक्षा पास नहीं कर पाते।