जब देवताओं और दानवों के बीच युद्ध हो रहा था तो उस समय राजा दशरथ देवताओं की ओर से लड़ने के लिए गए थे। वह अपने रथ पर सवार थे तभी रथ का पहिया जिस धुरा से जुड़ा हुआ होता है कि वह निकल रहा था।रानी कैकई भी उनके साथ थी। रानी कैकई ने वहां पर अपना हाथ दल दिया और पहिए को निकलने से बचाया।
इससे राजा दशरथ खुश होकर उन्हे दो वरदान मांगने को कहा था। और यह दो वरदान कैकई ने मांगे थे।उसमें से पहला वरदान यह था कि राजा रामचंद्र को 14 साल का वनवास मिले और उनके पुत्र भरत को राज सिहासन।
पर यह बात कुछ समझ में नहीं आई कि सिर्फ 14 साल ही राम के लिए वनवास क्यों मांगे वह पूरी उम्र भी तो मांग सकती थी।आइए बताते हैं ऐसा उन्होंने क्यों किया।
राम चंद्र की कहानी त्रेता युग की है। उस समय अगर कोई राजा 14 साल तक अपना राजपाट छोड़ देता था तो वह दुबारा राजा नहीं बन पाता था।रानी कैकई सिर्फ भगवान राम को राज पाठ से दूर करना चाहती थी।इसलिए कैकेई ने सिर्फ 14 साल का बनवास मांगा।परंतु आप सब लोग जानते होंगे कि भगवान रामचंद्र फिर से सिंहासन पर बैठे ऐसा इसलिए हुआ कि भगवान रामचंद्र के वनवास जाने के बाद भी उनके भाई भरत ने राजगद्दी ग्रहण नहीं किया उस राजगद्दी पर अपने भाई का खराउ रख दिए और खुद वनवासियों जैसा जीवन व्यतीत किए। इसलिए वापस आने पर रामचंद्र जी को राजा बने।