ज्ञानवापी विवाद की पूरी कहानी क्या है? जाने पहला केस दर्ज होने से लेकर अब तक क्या-क्या हुआ?

वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर (Gyanvapi History) के सर्वे का काम पूरा हो गया है। आज इस मामले पर सर्वे की रिपोर्ट (Gyanvapi Survey Report) के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। सर्वे में मिले साक्ष्यों के आधार पर कई अलग-अलग दावे किए जा रहे हैं। हिंदू पक्ष के सोहन लाल आर्य ने इस मामले में मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि अंदर बाबा मिल गए। बोलेँ- जिन खोजा तिन पाइयां… मतलब… जो खोजा जा रहा है था उससे कहीं अधिक मिला है।

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आर्य ने दावा किया है कि गुंबद दीवार और फर्श के सर्वे के दौरान कई ऐसे दबे हुए साक्ष्य मिले हैं। वहीं दूसरी ओर इस मामले को लेकर अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी के अधिवक्ता अभय नाथ यादव और मुमताज अहमद का कहना है कि अंदर कुछ भी नहीं मिला है। ऐसे में आइए हम आपको बताते हैं कि ज्ञानवापी विवाद (What is Gyanvapi History) क्या है और यह शब्द कैसे बना और कहां से इस विवाद (Gyanvapi Controversy History) की शुरुआत हुई।

Gyanvapi History

क्या है ज्ञानवापी का अर्थ?

ज्ञानवापी शब्द इन दिनों हर जगह खबरों में छाया हुआ है। इसका मुख्य कारण वाराणसी क्षेत्र का वहव ज्ञानवापी परिसर है, जहां पर काशी विश्वनाथ मंदिर के साथ ही साथ मस्जिद भी है। ज्ञानवापी शब्द का अर्थ ज्ञान+वापी से बना है। इसका पूरा अर्थ ज्ञान का तालाब होता है। कहा जाता है कि इसका यह नाम उस तालाब की वजह से पड़ा था, जो अब मस्जिद के अंदर है। वही भगवान शिव के नंदी मस्जिद की और आज भी मुंह किए बैठे हैं।

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क्या है ज्ञानवापी का इतिहास?

  • दावेदारों के मुताबिक विश्वनाथ मंदिर को सबसे पहले 1194 में मोहम्मद गोरी ने लूटा और तोड़फोड़ की। इसके बाद 15वीं सदी में राजा टोडरमल ने मंदिर को जीर्णोद्धार करवाया।
  • इसके बाद साल 1669 में औरंगजेब ने एक बार फिर से काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त कर दिया। इसके बाद औरंगजेब ने जब काशी का मंदिर बनवाया तो उसी के ढांचे पर मस्जिद बनवाया गया, जिसे आज ज्ञानवापी मस्जिद के नाम से जाना जाता है। यही वजह है कि इस मस्जिद का पिछला हिस्सा बिल्कुल मंदिर की तरह दिखाई देता है।
  • इसके बाद साल 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने काशी के मंदिर को दोबारा जीर्णोद्धार करवाया। इस दौरान पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने इसके लिए करीबन 1 टन सोना भी दान में दिया।

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कब-कब ज्ञानवापी विवाद पर हुआ मुकदमा?

  • 1991 में इस बार पहली बार मुकदमा दाखिल किया गया। पहली बार मुकदमा दाखिल कर पूजा की अनुमति भी मांगी गई।
  • 1993 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यथास्थिति रखने के आदेश जारी किए।
  • साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने स्टे आर्डर की वैधता को 6 महीने का बताते हुए जारी किया।
  • इसके बाद साल 2019 में वाराणसी कोर्ट में इस मामले पर एक बार फिर से सुनवाई शुरू हुई।
  • साल 2021 में फास्ट ट्रैक कोर्ट ने ज्ञानवापी के पुरातात्विक सर्वेक्षण को मंजूरी दी।
  •  मौजूदा समय में इसकी सर्वेक्षण रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई जारी है।

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क्या है ज्ञानवापी विवाद?

ज्ञानवापी विवाद एक ज्ञानवापी परिसर में स्थित मस्जिद को लेकर शुरू हुआ है। इस मामले पर हिंदू पक्ष का कहना है कि 400 साल पहले मंदिर तोड़कर यहां पर मस्जिद बनवाई गई थी, जहां मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज पढ़ते हैं। इस ज्ञानवापी मस्जिद का संचालन अंजुमन-ए-इंतजाम या कमेटी करती है। साल 1991 में विश्वेश्वर भगवान की ओर से वाराणसी के सिविल जज की अदालत में एक याचिका दी गई थी। इस याचिका में कहा गया था कि जिस जगह ज्ञानवापी मस्जिद है, वहां पर भगवान विश्वनाथ का मंदिर था और श्रृंगार गौरी की पूजा होती थी। साथ ही इस याचिका में ज्ञानवापी परिसर को मुस्लिम पक्ष से खाली करा कर हिंदुओं को सौंप देने की मांग की गई थी। वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में स्थित बाबा विश्वनाथ के मंदिर और मस्जिद को लेकर ही यह विवाद शुरू हुआ है।